[ad_1]
<p style="text-align: justify;">जिस भी व्यक्ति को कोरोना हुआ है, ये किसी के भी साथ हो सकता है. ये लक्षण दिमाग से जुड़े हैं. इसे मेडिकल भाषा में कहेंगे न्यूरो साइकेट्रिक (neuropsychiatric). इस स्टडी की पूरी डिटेल मेडिकल जर्नल <a title="<strong>’द लेंसेट’</strong>" href="https://www.thelancet.com/journals/lanpsy/article/PIIS2215-0366(22)00260-7/fulltext" target=""><strong>’द लेंसेट'</strong></a> में छपी है. स्टडी के मुताबिक, कोरोना नाक के रास्ते हमारे दिमाग में पहुंचकर हमारे न्यूरो फंक्शन को प्रभावित कर रहा है. इससे किसी पेशेंट को भूलने की बीमारी लग सकती है, किसी को बैचेनी की, किसी को अलग सी आवाजें सुनने की और किसी को सिर दर्द की शिकायत हो सकती है. सीधी भाषा में कहें तो कोरोना ने, न सिर्फ हमारे शरीर के अलग-अलग अंगों को बल्कि हमारे दिमाग को भी प्रभावित किया है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>तीन उम्र के लोगों के साथ हुई रिसर्च</strong><br />ये रिसर्च ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने की. स्टडी में हर उम्र के लोगों को रखा गया. बच्चे, जिनकी उम्र 18 साल से कम थी. वयस्क, 18 से 64 साल के लोग और बुजुर्ग जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा की थी. वैज्ञानिकों ने इन 12 लाख लोगों में दोनों तरह के कोविड मरीजों को रखा, यानी जिन्हें डेल्टा वैरिएंट से कोरोना हुआ और उन लोगों को जिन्हें <a title="ओमिक्रोन" href="https://www.abplive.com/topic/omicron" data-type="interlinkingkeywords">ओमिक्रोन</a> की वजह से कोरोना हुआ. जितने भी लोगों को स्टडी में शामिल किया गया उनमें वो लोग थे, जिन्हें पिछले 2 साल में अलग-अलग (20 जनवरी 2020 से 13 अप्रैल 2022) वक्त पर कोरोना हुआ.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>स्टडी में क्या निकला</strong><br />मेडिकल भाषा को आम तरीके से समझने की कोशिश करें, तो कोरोना ने जब भी न्यूरो फंक्शन को प्रभावित किया, उससे मूड डिसऑर्डर के केस बढ़े. अजीब सी बैचेनी, गुस्सा, घबराहट, मनोभ्रम (चीजें भूल जाना), मिरगी के दौरे आदि जैसे असर हुए. हालांकि, कुछ राहत की बात ये है कि किसी-किसी पर इन बीमारियों के असर 40-45 दिन तक हुए तो किसी पर और ज्यादा. ऐसे में अगर आप या आपके परिवार का कोई व्यक्ति इस तरह की चीजों से गुजरा या गुजर रहा है, तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>डॉक्टर क्या कहते हैं?<br /></strong>करीब एक साल पहले भी इस तरह के केस आए थे. तब भारत में पटना एम्स समेत कई मेडिकल संस्थानों ने इस पर रिसर्च की थी. तब पता चला था कि कोरोना का वायरस खुद सीधे दिमाग तक नहीं पहुंच सकता. इसके लिए वह प्रोटीन को मीडिएटर बनाता है. हालांकि, ब्रेन में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा नहीं होती पर फिर भी उस समय कोरोना को दिमाग तक पहुंचने का कारक प्रोटीन के एक मॉल्यीक्यूल को माना गया. कुलमिलाकर अगर इस तरह के लक्षण किसी मरीज में दिख रहे हैं, जिसे कोरोना हुआ है, तो कृपया डॉक्टर से जरूरी सलाह लें.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये भी पढ़ें</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>- </strong></p>
[ad_2]
Source link