DHFL Resolution Plan: नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स यानी (CoC) के समाधान योजना (Resolution Plan) को पुनर्विचार करने के लिए वापस करते हुए कहा कि (CoC) और एडमिनिस्ट्रेटर ने डीएचएफएल की कई प्रॉपर्टीज का मूल्यांकन बेहद कम किया है.
गौरतलब है कि हाल में डीएचएफएल (DHFL) को खरीदने वाली पीरामल कैपिटल एंड हाउसिंग फाइनेंस कंपनी ने डीएचएफएल के बैड लोन की वैल्यू ₹1 बताई. जिसके खिलाफ डीएचएफएल के कर्जदाताओं में से एक 63 मूंस टेक्नोलॉजिस कंपनी ने NCLAT का रुख किया.
बांद्रा हिल और बीकेसी में संपत्ति की वैल्यू 1 रुपये
याचिकाकर्ता के मुताबिक डीएचएफएल से रिकवर की जा सकने वाली संपत्ति की वैल्यू 30 से 40 हजार करोड़ रुपए के बीच है जिसकी वैल्यू सीओसी और प्रशासक ने महज 1 रुपये बताई है. आप ये जानकर शायद हैरान रह जाएंगे कि 1 रुपये वैल्यूएशन बताई गई प्रॉपर्टीज में बांद्रा पाली हिल, बीकेसी, जुहू में प्लॉट्स और एसआरए प्रोजेक्ट्स, पुणे समेत कई शहरों में एग्रीकल्चरल जमीन और अलग अलग डेवलपर्स के साथ दो दर्जन से ज्यादा प्रोजेक्ट्स शामिल हैं.
एनसीएलएटी कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि CoC ने संपत्ति की वैल्यू को कम आंका जबकि नियुक्त की गई एक प्रसिद्ध और निष्पक्ष एजेंसी Knight Frank ने इसकी कीमत तकरीबन 40 हजार करोड़ रुपए आंकी थी. इसी वजह से मामले की सुनवाई कर रही एनसीएलएटी कोर्ट ने कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स के रेजोल्यूशन प्लान को पुनर्विचार करने के लिए लौटा दिया.
संपत्ति का मूल्य कम बताने पर कमिटी पर खड़े हुये कई गंभीर सवाल
याचिका में ऐसे रेजोल्यूशन प्लान को मंजूरी देने वाली क्रेडिटर्स की कमिटी पर कई गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं. याचिका के मुताबिक, इन प्रॉपर्टीज की वैल्यू 1 रुपए बताने का मतलब है कि इस प्रॉपर्टी को बेचने से हासिल होने वाली रकम कर्जदाताओं को देकर कर्जा चुकाने के बजाय डीएचएफएल कंपनी को खरीदने वाली कंपनी को मिलेगी.
सुप्रीम कोर्ट जा सकता है पीरामल ग्रुप
ये कोई पहली बार नहीं है जब CoC पर आरोप लगे हों. इससे पहले CoC ने डीएचएफएल के प्रमोटर कपिल वधावन के कर्जदाताओं को 100 फीसदी बकाया चुकाने के प्रस्ताव को भी नजरंदाज किया था. गौरतलब है कि पीरामल ग्रुप ने डीएचएफएल कंपनी को तकरीबन 34 हजार करोड़ रुपया में खरीदा था. पीरामल ग्रुप द्वारा ऋणदाताओं को किये गए 34,250 करोड़ रुपये के भुगतान में 14,700 करोड़ रुपये नकद और 19,550 करोड़ रुपये का कर्ज शामिल है.
बहरहाल पीरामल ग्रुप ने भी एनसीएलएटी के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का मन बनाया है. लेकिन इस कानूनी लड़ाई के चलते अब कर्जदाताओं को उनका बकाया मिलने में लंबा समय लग सकता है.
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